राजा के चिता पर बना हैं श्यामा काली मंदिर आइये जानते हैं क्या हैं इसके पीछे की कहानी !
बिहार के दरभंगा जिले में राजा के चिता पर बना हैं श्यामा काली मंदिर इस मंदिर को मनोकामना मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। मां काली के धाम में बड़ी संख्या में श्रद्धालु मांगलिक
कार्य करने आते हैं !
हिन्दू धर्म में ऐसी मान्यता हैं की किसी शुभ
कार्य होने के एक साल तक किसी भी दाह संस्कार या किसी भी श्मशान भूमि में नही जाना
चाहिए और ना ही श्राध्द का दाना खाना चाहिए !
श्यामा मंदिर , जो श्मशान भूमि पर हैं जहाँ लोग शुभ कार्य मुंडन,उपनयन, विवाह जैसी सभी मांगलिक कार्य करने आते हैं यहाँ हजारो की संख्या में लोग प्रतिदिन आते हैं ! श्यामा मंदिर में सालो के सभी दिन कीर्तन-भजन और धार्मिक कार्यक्रम होते रहता हैं !
श्यामा मंदिर , जो श्मशान भूमि पर हैं जहाँ लोग शुभ कार्य मुंडन,उपनयन, विवाह जैसी सभी मांगलिक कार्य करने आते हैं यहाँ हजारो की संख्या में लोग प्रतिदिन आते हैं ! श्यामा मंदिर में सालो के सभी दिन कीर्तन-भजन और धार्मिक कार्यक्रम होते रहता हैं !
मंदिर के निर्माण की कहानी
महाराजा रामेश्वर सिंह दरभंगा राज परिवार के साधक राजाओं में थे! रामेश्वर सिंह माँ काली के बहुत बड़े भक्त थे और महाराजा रामेश्वर सिंह तंत्र विद्या के भी बहुत बड़े ज्ञाता थे !
राजा के नाम पर ही इस मंदिर को रामेश्वरी श्यामा माई के नाम से जाना जाता है इस विशालकाय मंदिर की स्थापना 1933 में उनके ही पुत्र दरभंगा महाराजा कामेश्वर सिंह ने की थी !
उसी समय से माँ श्यामामाई की पूजा तांत्रिक और वैदिक विधियों से की
जाती हैं !
मंदिर की विशेषता
पूरे भारत में काली की इतनी बड़ी मूर्ति कहीं नहीं है. मूर्ति का
विग्रह अलौकिक और अविस्मरणीय है मां श्यामा की विशाल मूर्ति भगवन शिव की जांघ एवं
वक्षस्थल पर अवस्थित है.
मां काली की दाहिनी तरफ महाकाल और बायीं ओर भगवान गणेश और बटुक की प्रतिमाएं स्थापित हैं. चार हाथों से सुशोभित मां काली की इस भव्य प्रतिमा में मां के बायीं ओर के एक हाथ में खड्ग, दूसरे में मुंड तो वहीं दाहिनी ओर के दोनों हाथों से अपने पुत्रों को आशीर्वाद देने की मुद्रा में विराजमान हैं !
मां काली की दाहिनी तरफ महाकाल और बायीं ओर भगवान गणेश और बटुक की प्रतिमाएं स्थापित हैं. चार हाथों से सुशोभित मां काली की इस भव्य प्रतिमा में मां के बायीं ओर के एक हाथ में खड्ग, दूसरे में मुंड तो वहीं दाहिनी ओर के दोनों हाथों से अपने पुत्रों को आशीर्वाद देने की मुद्रा में विराजमान हैं !
जानकारों का कहना है कि मनोकामना माता सीता का ही रूप हैं। इस
बात की व्याख्या राजा रामेश्वर सिंह के सेवक रह चुके लालदास ने रामेश्वर चरित
मिथिला रामायण में की है। यह वाल्मिकी द्वारा रचित रामायण से ली गई है।
श्यामा काली के आरती का विशेष महत्व
मनोकामना मंदिर में होनेवाली आरती का विशेष महत्व है। यहां आए भक्तजन मंदिर
आरती में शामिल होने के लिए घंटों इंतजार करते हैं।
नवरात्र के दिनों में यहां श्रद्धालुओं की संख्या बढ जाती है और मेला लगता है। जो भी मां की इस आरती का गवाह बन गया उसके जीवन के सारे अंधकार दूर हो जाते हैं,
साथ ही भक्तों की समस्त मनोकामना भी पूरी हो जाती है. मंदिर के गर्भगृह में जहां एक तरफ काली रूप में मां श्यामा के भव्य दर्शन होते हैं, वहीं दूसरी ओर प्रार्थना स्थल के मंडप में सूर्य, चंद्रमा ग्रह, नक्षत्रों सहित कई तान्त्रिक यंत्र मंदिर की दीवारों पर देखने को मिलते हैं.
इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि मनोकामना मंदिर में मां श्यामा की पूजा तांत्रिक और वैदिक दोनों ही रूपों में की जाती है !
नवरात्र के दिनों में यहां श्रद्धालुओं की संख्या बढ जाती है और मेला लगता है। जो भी मां की इस आरती का गवाह बन गया उसके जीवन के सारे अंधकार दूर हो जाते हैं,
साथ ही भक्तों की समस्त मनोकामना भी पूरी हो जाती है. मंदिर के गर्भगृह में जहां एक तरफ काली रूप में मां श्यामा के भव्य दर्शन होते हैं, वहीं दूसरी ओर प्रार्थना स्थल के मंडप में सूर्य, चंद्रमा ग्रह, नक्षत्रों सहित कई तान्त्रिक यंत्र मंदिर की दीवारों पर देखने को मिलते हैं.
इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि मनोकामना मंदिर में मां श्यामा की पूजा तांत्रिक और वैदिक दोनों ही रूपों में की जाती है !
श्यामा मैया
मंदिर कैसे पहुचे ?
दरभंगा स्टेशन से
1 किलोमीटर की दूरी पर मिथिला विश्वविद्यालय के परिसर में गौतम सरोवर के पास ही मंदिर बना है।
आपसे अनुरोध !
आपको श्यामा काली मंदिर के बारे ये कहानी कैसी लगी नीचे comment में जरुर बताये और ज्यादा से ज्यादा share कर के आप धर्म के भागिदार बने !!
जिस से और भी लोग इस आलोकिक श्यामा मंदिर की कहानी को पढ़ सके !
जिस से और भी लोग इस आलोकिक श्यामा मंदिर की कहानी को पढ़ सके !
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